Friday, September 4, 2009

कभी उतरते थे दिल में, अब दिल से उतर जाते हैं...
चुनते हैं खुद को,.. फिर खुद ही बिखर जाते हैं.....!!!

बज्म-ए-यार की कुछ यूँ आदत सी पड़ गयी...
एहसास-ए-तन्हाई से अब डर जाते हैं...!!!

न कोई मंजिल, न ठिकाना, न कोई जुस्तजू ...
बस चल चलें हैं,.. जहाँ तक राहगुजर जाते हैं...!!

न कोई रब्त, न ही आशना किसी से ....
कोई मिले भी तो,.. बचाकर नज़र जाते हैं....!!!

हम भी उनसे कुछ दूसरे न निकले
जो फकत जीते हैं,.. फिर मर जाते हैं...!!!

कभी मिलें,.. तो पूछूंगा,.. उनसे दुनिया का फरेब....
सुना है फ़कीर घर-घर जाते हैं...!!!

दे सको कुछ मुझको, तो थोडी दुआएँ ही दे दो....
कहते हैं, दुआओं से किस्मत संवर जाते हैं...!!

खैर, इतने मायूस भी न हो, ..की अब भी कुछ नहीं बिगड़ा ...
'साहिल', ये वक्त के पहिये हैं,...आते हैं, गुजर जाते हैं..!!



(बज्म: gathering; जुस्तजू : desires; राहगुजर: road; रब्त:closeness; आशना: aquaintance;)