Saturday, June 20, 2009




अब अपनों से क्या शिकवा ..क्या गिला करना...
हमने छोड़ दिया है अब... भला करना...!!!

उसका तस्सवुर ही तो सहारा है...जीने के लिए...
क्यूँ भूल जाता है उससे मुब्तिला करना..!!!

वो अगर नहीं करता ...तो तू ही सही...
मिले जब भी वो..उसी जज्बे से मिला करना..!!!

तेरे इश्क को भी होना है आबाद एक दिन....
थोडा सब्र रखना...जरा हौंसला करना...

जंग जो चलती है ..तो चलने दे
...जेहन -ओ -दिल की...
"साहिल"... तू अपने दिल से ही फैसला करना...!!!

(tassawur: memories,dreams; mubtila : entangled; jazba: enthusiasm; jehen-o-dil : mind and heart)