यूँ ही रुक जाएँगी किसी रोज़... साँसे चलते-चलते ....
दफ्फतन जैसे बुझ जाते हैं कभी ..चिराग जलते-जलते ...!!
न मिलाकर यूँ सब से.... इतने अंदाज़ बदल बदल के ....
इंसान बदल जाते हैं ...चेहरे बदलते-बदलते.....!!
वो बदकिस्मत, जो टूट जाते हैं.... गम-ए-हबीब में ...
एक उम्र लग जाती हैं.... उन्हें फिर संभलते-संभलते ...!!
मत इतरा इतना, जो मिल गया है तुझको... सारा आकाश ....
अरे परिंदे भी घर लौट आते हैं ..शाम के ढलते-ढलते...!!!
दूर ही रखना खुद को ...फितना-ए-मुहब्बत से 'साहिल'
रात गुजरेगी वरना,.. करवटे बदलते-बदलते...!!!
(दफ्फतन- suddenly; गम-ए-हबीब: sorrow after break off with beloved; )
फितना-ए-मुहब्बत: tricks of love)