वो जब भी मिला ..एक फासला रहा..
मुझको उससे... बस यही गिला रहा..
कर पाते जो शिकायत हम .. उससे ..उसी की
..मुझमें कभी ना इतना हौंसला रहा..
तमाम उम्र मैंने मानी है..उसकी हर शर्तें ..
मुझको मंजूर ..उसका हर फैसला रहा...!!!
उसके आने पर खुलूस सी..उसके जाने पर खलिश ..
मेरी जिंदगी का बस यही सिल-सिला रहा...!!!
वो मिला तो था,एक हमसफ़र कि तरह..राह-ए-जिंदगी में ...
अब संग मेरे...फ़कत यादों का काफिला रहा..!!!
मेरे गम का ,मेरी ख़ुशी से मरासिम क्या कहिये ..
जैसे पानी में कोई बुलबुला रहा..!!!!
वोह सुनाता था अक्सर ... मुझे किस्से तन्हाइयों के ....
क्या खबर उसे....की मैं कितना अकेला रहा.....!!
मुमकिन है..मेरे हिस्से थीं...और भी लज्जत-ए-हयात...
पर मैं तो बस..उसी के ख्यालों में मुब्तिला रहा....!!!
अब शिकयतें क्या करनी... अपनी ही किस्मत से 'साहिल'
सो मान लिया की...खैर, जो भी रहा ..अच्छा रहा, भला रहा...!!
(खुलूस सी: sweet feeling; खलिश: anxiety; लज्जत-ए-हयात: Good things of life; मुब्तिला : entangled)