क्या अजब है ...यह कैसा हुनर देखते हैं ...
हम खुद पे ...उनकी फुरक़त का असर देखते हैं ....!!!
मेरी निगाहों में ....बसा रहता है चेहरा उनका ....
और वो हैं की ...हमे बे-मुर्र्वत, बे-खबर देखते हैं ...!!
वो बरहम हुआ है ....तो कुछ तो बात रही होगी ...
क्या रह गयी थी.. हमसे कसर देखते हैं ...!!
उनका आना, फिर चले जाना ..तो एक मुक्कद्दर ही था ....
अब कैसे होगी अपनी.... ये बसर देखते हैं ...!!!
क्या बताएं की क्या मिला ... तोहफा-ए-इश्क हमें ......
रात तन्हाइयों में ...चाक-ए-जिगर देखते हैं ...!!!
क़फ़स-ए-उल्फत में जिंदगी का हाल न पूछो ....
हम खुद को कितना .. होता हुआ बे-असर देखते हैं ....!!!
हमसे मरासिम का वो शायद रख भी ले कुछ भरम ....
बड़े खलिश से हम राह-गुज़र देखते हैं ...!!
लौट भी आओ ...कठिन बड़ी है ... राह-ए-जिंदगी ....
की हम तुझमे ही अपना हम-सफ़र देखते हैं ...!!
(फुरक़त- to get separated; बे-मुर्रुवत- unconcerned; बरहम- upset;
चाक-ए-जिगर: wounded heart; क़फ़स -ए -उल्फत:prison of love;)