Thursday, August 20, 2009

बंद तो होनी ही हैं आँखे..क्या ख्वाब करना...
क्या अच्छा , क्या बुरा, क्या हिसाब करना ..!!

हम जो करते हैं...मर्ज़ी है खुदा की ही...
क्या छुपा है उस से..क्या हिजाब करना...!!

ये जरुरी नहीं की हर सवाल लाजिमी हो...
हर सवाल का क्या जवाब करना ...!!

इतनी बेदिली में भी ..जो मस्त जीये चले जातें हैं...
मेरे इस तकमील पर... कोई खिताब करना ...

बेरुखी इतनी, अच्छी नहीं..किसी सूरत-ए-हाल में ...
इतना तो मरासिम रखना, की आदाब करना...!!!

जो मुमकिन हो.. तो मत कर, इन लहरों से दिल्लगी 'साहिल'
जो खुद हों बेताब, उन्हें और क्या बेताब करना..!!




(हिजाब: veil; तकमील: achievement; खिताब: to give some name in honour;
मरासिम: relationship; आदाब: to greet)