Saturday, January 3, 2009


ऐ .. काश की तवक्को से अपनी भी तकदीर तो मिले …

चस्म -ए -तसव्वुर से देखे गए ख्वाबों की कुछ ताबीर तो मिले …!!!


यूँ जो फिरते हैं बेकल -बेकल , हर शाम -ओ -सुबह …

हम खुद ही संभल जायेंगे ,... कोई बशीर तो मिले …!!!


वो कुछ लोग , जो जान लेते हैं , मुक्कद्दर सब का ….

हमें भी इंतजार है ,….. कोई ऐसा फ़कीर तो मिले …..!!!


फिर से आ जायेंगे हमें खुश रहने के आदाब …..

कैद -ए -आजार से निजात की .... कोई तफसीर तो मिले ….!!!


मुख्तसर खुद -बी - खुद हो जाएगा अपना भी राह -ए - सफ़र …..

तबियत जिसकी मिलती हो हमसे ….कोई ऐसा राहगीर तो मिले ….!!!



(Tawaqqo- expectations, Chasm-e-Tasawwur: eyes of imagination, Taabeer- out come of the dream, Bekal- uneasy/restless, Basheer – a messenger of good news, Aadab- ways/manners, kaid-prison, aazar-difficulties, Tafseer- keys, Mukhtasar-shortend)

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