ऐ .. काश की तवक्को से अपनी भी तकदीर तो मिले …
चस्म -ए -तसव्वुर से देखे गए ख्वाबों की कुछ ताबीर तो मिले …!!!
यूँ जो फिरते हैं बेकल -बेकल , हर शाम -ओ -सुबह …
हम खुद ही संभल जायेंगे ,... कोई बशीर तो मिले …!!!
वो कुछ लोग , जो जान लेते हैं , मुक्कद्दर सब का ….
हमें भी इंतजार है ,….. कोई ऐसा फ़कीर तो मिले …..!!!
फिर से आ जायेंगे हमें खुश रहने के आदाब …..
कैद -ए -आजार से निजात की .... कोई तफसीर तो मिले ….!!!
मुख्तसर खुद -बी - खुद हो जाएगा अपना भी राह -ए - सफ़र …..
तबियत जिसकी मिलती हो हमसे ….कोई ऐसा राहगीर तो मिले ….!!!
(Tawaqqo- expectations, Chasm-e-Tasawwur: eyes of imagination, Taabeer- out come of the dream, Bekal- uneasy/restless, Basheer – a messenger of good news, Aadab- ways/manners, kaid-prison, aazar-difficulties, Tafseer- keys, Mukhtasar-shortend)
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